शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

थोड़ा सैंयम बरतें..सार्वजनिक स्थलों पर न करें

सचिन जी मैं आपसे बहुत नाराज हूं...आज तक जिस ब्लॉगबाजी की बीमारी से से खुद को बचाये रखा था आपकी वजह से वो गले पड़ गई....संस्थान मेरे जिस समय के लिये मुझे कीमत देता है...उस समय में ब्लॉगबाजी कर रहा हूं इसकी कीमत मुझे अपनी रात की नींद खोकर चुकानी होगी...सचिन जी इसके लिये भी मैं आपको ही दोषी मानता हूं....लोग खुलेआम हस्तमैथुन करने लगे हैं इसके लिये भी आप ही जिम्मेदार हैं...साथ ही आपको बधाई भी देता हूं कि जो काम बहुत से लोग सिर्फ सोचते रहे वो आपने कम से कम शुरू तो कर दिया...औऱ बधाई उन लोगों को भी जिन्होने उम्मीद के मुताबिक सचिन जी के लेख पर प्रतिक्रिया की....लेकिन अपने उन मित्रों के लिये क्या कहूं जो मेरे विश्वास के मुताबिक दूर खड़े तटस्थ होने का जैश्चर देते रहे...खैर मेरे उस दोस्त के साथ मेरी सहानभूति जरूर है जिसकी काबलियत का लोहा मैंने पिछले संस्थान में ही मान लिया था...सचिन जी आपको ऐसा नहीं लिखना चाहिये था जिससे मेरे दोस्त को इस कदर मिर्चें लगीं कि वमन से भी काम नहीं चला...उसने कोना तलाशना भी बेहतर नहीं समझा और ब्लॉग पर ही हस्थमैथुन कर डाला...अरे भाई कुत्ते बिल्ली बंदर और सूअर जैसे जानवर क्या कम थे खुले आम मैथुन करने के लिये...खैर जिस काबिलियत का जिक्र किया है...उससे बिल्कुल इत्तेफाक रखता हूं कि....पूरा का पूरा उत्तरवैदिक साहित्य तभी रचा गया जब आर्य मगध के पार गए...6 वेदांगों में से 5 का केंद्र बिहार ही रहा... आज भी हंस हो या वागर्थ या कोई अन्य साहित्यिक पत्रिका...सबसे ज्यादा बिहार मैं ही पढ़ी जाती है...लेकिन क्या तुमने इनमें से कुछ भी पढ़ा है?....चाहे कुछ भी जवाब दो लेकिन इस तरह खुले आम हस्तमैथुन करके तुम जवाब पहले ही दे चुके हो....मेरे दोस्त साक्षर होने और पढ़े लिखे होने में फर्क है ये तुम शायद ही समझते हो...और ये भी तो बताओ कि पुश्तैनी जीन के भरोसे ही रहोगे या अपने लिये भी कुछ करोगे...यकीनन तुम्हार इरादा हस्तमैथुन करके बच्चा पैदा करने का तो नहीं होगा....लेकिन अपने पुश्तैनी जीन को अपनी अगली पीढ़ी को जस का तस सौंप देना भी तो हस्तमैथुन से बच्चा पैदा करने जैसा ही है....अगर आप ये नहीं जानते हो दोस्त तो मैं आपको बता दूं कि इससे जीन की गुणवत्ता में ह्रास होता रहता है....केवल जन्म से ब्राहम्ण होने से ही कोई ब्राहम्ण हो जाता तो न उस उत्तरवैदिक साहित्य की जरूरत होती और न 6 वेदांगों की....सचिन जी ये तो मैं भी कहूंगा...आप से एक चूक हो गई....चूक ये कि आपने उस वाद को अनदेखा किया जो बिहारवाद से भी तेजी से मीडिया को जकड़ रहा है....वो वाद है चमचावाद...इसके लिये किसी राज्य का होने की कोई जरूरत नहीं है....बिहार, यूपी...या राजस्थान कहीं का भी हो सकता है...